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अनुवादक – सुश्री मृदुला
अनुवादक – सुश्री मृदुला
वेदीक काल में जाति व्यवस्था नही थी।
हम वेदों में श्रम का सर्वोच्च महत्त्व पाते हैं | हमने
देखा कि आर्यों के चाकर या आदि निवासी समझे गए दास दस्यु या राक्षस वस्तुतः
अपराधियों के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पर्यायवाची शब्द हैं | प्रत्येक
सभ्य समाज ऐसे अपराधियों पर अंकुश लगाता है | हम यह भी देख चुके हैं
कि वेदों में सभी चार वर्णों को जिनमें शूद्र भी शामिल हैं, आर्य माना गया
है और अत्यंत सम्मान दिया गया है | यह हमारा दुर्भाग्य है कि वेदों की इन
मौलिक शिक्षाओं को हमने विस्मृत कर दिया है, जो कि हमारी संस्कृति की
आधारशिला हैं | और जन्म-आधारित जाति व्यवस्था को मानने तथा कतिपय शूद्र
समझी जाने वाली जातियों में जन्में व्यक्तियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार
आदि करने की गलत अवधारणाओं में हम फँस गए हैं |