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ऐसा केंद्र हो जिधर हर बात की
ज़ानकारी मिले, संशोधन हो और हर सुविधा निर्धारित दाम पर मिलें। ऐसे केंद्र के लिये
बड़ी ज़गह लगेगी। शायद 100 हेक्टर या उससे भी ज़ादा। शासन को ऐशी ज़गह मिल सकती है।
किसान भूमी देंगे, यदी शासन का हेतु साफ़ हो। भूमी ज़िस कार्य के लिये ग्रहण की है
वह उसी कार्य के लिये इस्तेमाल करनी चाहिये। ज़मीन शासनने खरीदने के बज़ाय भाड़े पर
लेनी चाहिये। याने ज़मीनधारक का हक़ शाबूत रहे। हर साल शासन ज़मीनधारक और उस के पश्चात
उस के वारीस को किराया देती रहे। किराया जमीन की पिछले 5 साल की औसत उपज़ और वर्तमान
में हर साल की आधी उपज़ पर निर्भर करनी चाहिये। याने इस में जो ज़ादा हो वह किसान को
और उस के पश्चात उस के वारीस को मिलना चाहिये। यदी भूमिअधिग्रहण कानून में यह बदलावहो तो विकास करने के लिये भूमी मिल सकती है।
ITI Ramkrishna Mission |
ITI Rohatak |
ITI Kolkata |
शुरवात प्रशिक्षण केंद्रसे का
जाय। यह केंद्र पुरा आवासी होना चाहिये। प्रशिक्षणार्थीओं को रहने की और प्रशिक्षण
की सुविधा दी जाय। पूरी सुविधा मुफ़्त में दी जाय। शुरी में सिर्फ़ शासन की योज़नाओं
की पहचान कराई जाय। धीरे धीरे गाँवसे संबंधित और विषय जोड़े जाय। पाँच साल में प्रशिक्षणार्थीओं
को शासन की योज़नाओं के साथ आरोग्य, पानी (जलसंवर्धन के साथ), बिज़ली, सड़क और ख़ेती
के विषय में पूरी ज़ानकारी दी जाय। तेहसील में पायी ज़ानेवाली हर तरह की ज़मीन का नमुना
केंद्र में होना चाहिये। ज़ो नमुना नही है वह कृत्रिम रीतिसे बनाया जाय। ख़ेती के आधुनिक
तंत्रज्ञानसे प्रशिक्षणार्थीओं को अवगत किया जाय। प्रशिक्षणार्थीओं को गाँव के सुधार
के लिये पूरी और अद्यावत ज़ानकारी मिलनी चाहिये। इस केंद्रसे जो भी प्रमाणपत्र प्राप्त
करेगा वह निष्णात होना चाहिये। प्रशिक्षार्थीओं को संगणक (कॉम्प्युटर) और इंटरनेट की
भी अच्छी जानकारी दें। प्रशिक्षण के बाद वह अपना ख़ुद का कार्यालय प्रस्थापित करें।
इंटरनेटसे नमुना अर्ज ले कर लोगों को दे दे और वह ठीक तरह भर के शासन के कार्यालम में
पहुँचा दे। शासन का कार्यालय ऐसे अर्ज स्वीकार कर के निश्चित समय में उस पर कार्यवाही
करें। शासन की योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुँचाये। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ती को शासन
आर्थिक मदद ब्याज पर दे दे। शासन भलेही उसे नौक़री ना दे वह गाँववालों की सहाय्यता
कर के अपनी रोजी रोटी कमा सकता है। खुद के रोजी रोटी कमाने के साथ गाँव का विकास भी
कर सकता है।
किसानों को उपज़ का खर्च़ा भी
नही मिलता। इस का प्रमुख कारन, उपज़ एक साथ पूरे क्षेत्र में होती है। ग्राहकों को
पूरे साल में जरूरत होती है। जिन के पास पैसा होता है या जों बैंकसे या कोई और ज़गहसे
कर्जा प्राप्त कर सकते है वे उपज़ के समय मामूली क़ीमत दे के उस का संग्रह करते है
और अपने मर्जीसे ग्रहकों को सालभर बेचते है। बेपारीओं का आधा काम शासनने करना चाहिये।
याने की उप़ज का संग्रह करने की सुविधा क़िसानों को किरायेपर देनी चाहिये और ख़ेती
की उपज़ ग्राहकों के पास माँग के हिसाबसे पहुँचाना चाहिये। उपज़ का संग्रह करके सम्हालने
की ज़बाबदारी यदी शासन निभाये तो किसानों को अच्छे दाम मिल सकते है, ख़ेती फ़ायदे में
हो सकती है और उपज़ बढ़ सकती है याने ग्रामविकास हो सकता है। यह दूसरा कदम होना चाहिये।
बहुत सारे गाँवों में पानी की
समस्या गेभीर है। हालाँ की सि पर कफ़ी संशोधन हुआ है, मगर यह संशोधन गाँववालों के पास
पहुँचाना चाहिये। जलसंधारण नीति अपना के हर गाँव पानी के बारे में स्वयंसिद्ध हो सकता
है। इस संशोधन का प्रशिक्षण भी ऐसे केंद्र में देना चाहिये। प्रशिक्षण प्राप्त होने
का बाद इस व्यक्ती की सहायतासे हर गाँव अपनी जलसंधारण योज़ना बना सकता है। इसी तरह
हर गाँव खेती के लिये बीज़ पैदा कर सकता है, गोबरगॅस का इस्तेमाल कर सकता है, सौर ऊर्ज़ासे
गाँव का अंधेरा दूर कर सकता है। इस की चावी है प्रशिक्षण और वित्तिय सहायता। प्रशिक्षण
के लिये 2-2 हेक्टर क्षेत्र के हिस्से ऐसे बनाये जैशी ज़मीन गाँव में हो। हर क्षेत्र
में कौनसा बीज ऐर कैसे बोना चाहिये यह निश्चित करने के लिये प्रयोग करने चाहिये। जब
फ़ायदेमंद निष्कर्ष प्राप्त होंगे तब प्रशिक्षित व्यक्ती वह गाँववालों तक पहुँचा सकता
है। गाँववाले उसे अपनाकर उपज़ बढ़ा सकते है। इस तरह खेती फ़ायदेमंद हो सकती है। शासन
को इस के लिये काफ़ी मेहनत करनी पडेगी। मगर यह मेहनत फलदायी होगी। शासन का यह तीसरा
क़दम अहम है।
आज़ कल किसानों के पास ख़ेती के
लिये बैल नही होते। किसान यंत्रांपर बिस्वास ज़ता रहा है। मगर किसानों के पास जमीन
कम होने की वज़हसे किसान पूरे यंत्र ख़रीद नही सकता। उसे बड़े जमीनदारों के उपर निर्भर
रहना पड़ता है। हर काम का निश्चित समय होता है। यदी समय पर काम नही हुआ तो पूरे साल
की मेहनत बरबाद हो सकती है। शासन इस केंद्र में ठीक पैमाने पर ख़ेती में इस्तमाल होनेवाले
सब यंत्र रख़ सकती है औेर किसानों को सही समय पर किराये पर दे सकती है। इस का किराया
शासन उपज़ बेचने के बाद ले सकती है। यह किराया पैसों में लेने के बज़ाय उपज़ के ज़रिये
ले तो किसानों को ज़ादा सहुलियत होगी। भारत में बार्टर पद्धति हज़ारो सालसे प्रचलित
है और यह किसानों के लिये पूर्ण फ़ायदेमंद साबित हुई है। इस में निजी क्षेत्र की मदद
ली जा सकती है। जनता को इस का दोहरा फ़ायदा होगा। यंत्र बनानेवाला किसानों को सही समय
पर यंत्र उपलब्ध होंगे और साथ में यंत्र बनानेवाला उद्योग बहरेगा।
इस के अलावा काफ़ी कुछ
किया ज़ा सकता है। आरोग्य प्रशिक्षण, उर्जा उत्पादन, वनरोपण, जलसंधारण ऐसे कई मुद्दे
है जो गाँव को स्वयंपूर्ण कर सकते है। परिवहन के लिये एक शहरसे दूसरे शहर तक कॉरिडॉर(गलियारा) बना के शहरों को गाँव पहुँचाया जा सकता है। इससे ना सिर्फ गाँव स्वयंपूर्ण
होगे बल्कि जनता की क्रयशक्ति बढ़ेगी और पूरा देश आगे बढ़ता रहेगा। भारत की तरक्की
के लिये यह फ़ायदेमंद होगा और विकास की गंगा हमेशा के लिये बहती रहेगी। हर भारतवासी
इस पर गौर करें और सुझाव दें। आप के सुझाव इस लेख के टिप्पणी (कॉमेंट) या समिक्षा के
रूप में या अलग तरीकेसे दे सकते है। जयहिंद।
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