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Thursday, 8 September 2011

भूमिअधिग्रहण कानूनः

भूमिअधिग्रहण कानून 1885 या 1894 में अंग्रेजोंने बनाया था। अब तक उस में 18 संशोधन हुअे। प्रस्तावित संशोधन उन्नीसवाँ है। इतने कानून बनानेसे कानून का मतलब आम आदमी के समझ में नही आता. उसका मतलब है की शासन चाहती है की, जितनी जादा मतभिन्नता हो उतना अच्छा है। जरुरत पड़ने पर चाहे जैसा मतलब निकाल सकते है और न्यायालय मे जाकर जितना विलंब करना है उतना कर सकते है। भूमिअधिग्रहण विकास कामों के लिये आवश्यक है। जनता विकास चाहती है। मगर किसानों के लिये जमीन माँ समान है। कोई भी बस चले तो जमीन नही देगा।  इधर जादा जानकारी मिल सकती है।
इस का मतलब यह निकलता है कि, किसान विकास चाहे तो ही भूमिअधिग्रहण करना चाहिये। भूमिअधिग्रहण का प्रस्ताव भूमी के मालिक से प्राप्त होना चाहिये। अगर ऐसा हो तो भूमिअधिग्रहण का प्रस्ताव भूमी के मालिक और विकसक दोनों को मान्य होगा।
भूमिअधिग्रहण कर के शासन और विकसक आम आदमी को संकट में डालते है। उसके उपजीविका के साधन छीन लेते है। इस का मुआवजा जरूर दिया जाता है। प्रस्तावित कानून में 4 गुना मुआवजा देने की बात कही है। शासन सोचता है चार गुना मुआवजा देनेसे किसानोंपर मेहरबानी कर रही है। किसानों का सोचना है कि माँ का मुआवजा नही हो सकता। कितने भी पैसे मिले तो इससे जिंदगी की रोटी नही मिल सकती। पैसे कुछ साल में खर्च होंगे और आधा पेट भी भर नही सकेंगे। दुसरी बाजू से देखा जाये तो भूमि का मूल्य जैसा जैसा विकास होगा बढता ही जायेगा। यह बढोतरी कुछ साल में सौ गुना या उससे भी जादा हो सकती है। बहोत जगह ऐसा हुआ है। 4 गुना जादा मूल्य देना नाइन्साफी है।
ऐसा कानून होना चाहिये कि, पीडीत किसान को मुवाजवा मिले और उस के भविष्य का प्रबंध भी हुअे। नया कानून जब बन रहा है तो पुराने 18 कानूनों को क्यों रखना चाहिये? नया कानून ऐसा होना चाहिये कि, वह पुराने सब कानुनों की जगह लेगा। ऐसा करनेसे एक ही कानून के मुताबिक कामकाज चलेगा। नये कानून में भूमिधारक का पूरा ख्याल रखना चाहिये। कम से कम निम्नलिखित तरतुदे होनी चाहिये।

1.       सब से पहिले विकास के लिये भूमिअधिग्रहण करने  के लिये सभी पर्यायों पर विचार होना चाहिये। यदी दूसरा पर्याय नही हो तो ही उस जग़ह भूमिअधिग्रहण करना चाहिये।
2.      जमीन के बदले पुरी नही तो कम से कम 90/95 प्रतिशत जमीन मिलनी चाहिये।
3.      मक़ान के बदले मक़ान मिलना चाहिये।
4.     जमीन और मक़ान देते वख्त यह भी ख्याल रखना चाहिये कि, वह पास में ही हो। यह हो सकता है। विकास के लिये जो भी जमीन लगेगी उस के दायरे के बाहर 10-20 गुना जादा जमीन का विचार करें। सब की 10-5 फीसदी जमीन कम कर के फिरसे बाँट दे। इस तरह कोई भी विस्थापित नही होगा। सब के पास जमीन रहेगी। जमीन बाँटते समय सावधानी बरतनी पडेगी. जमीन का क्रम वही रहना चाहिये।
5.      ज़मीन का जो 5-10 प्रतिशत हिस्सा विकास के काम के लिये लिया जाय, उस का मुआवज़ा इकठ्ठा दे कर जमीन खरिदने के बज़ाय किरायेपर लंबे समय तक ली जाय। किराया ज़मीन मालिक और उस के पश्चात उस के वारिसों को हर महिने या हर साल दिया जाय। ज़रूरत हो तो सभी ज़मीन मालिकों की सहकारी संस्था निर्माण की जाय और सभी व्यवहार इस संस्था के माध्यमसे संपन्न हो।
6.      यदी पास में जमीन नही दे सकते, जैसे की नदीपर बाँध बनाना हो, तो विकास काम की वजहसे जो लाभक्षेत्र निर्माण होगा उस का विचार करें। शायद एक फी सदी से भी कम क्षेत्र संपादित कर के बाँटा जा सकता है। लाभ क्षेत्र के जमीन मालिकों ने इतना तो त्याग करना वाजवी है।
7.     अब तक की स्थिती देखें तो यह मालूम होता है की, भूमिअधिग्रहण के बाद किसानों को कोई भी पूछता नही। 40-50 साल के बाद भी उन्हे न्याय नही मिलता। ऐसी स्थिती में किसान शासन पर विश्वास कैसे कर सकते है।
8.      सब से जादा तकलीफ़ तो उन लोगों को होती है जो जमीन के मालिक नही होते मगर जमीन पर मज़दूरी कर के अपना पेट पालते है। ऐसे लोगों का विचार अब तक के 18 कानूनों में नही किया गया। यह मज़दूर ना पढ़े लिख़े होते है ना कोई और काम जानते हे। उनका रोज़गार बेद होता है और वे कोई मुवावज़ा भी नही माँग सकते। इन लोगों का विचार होना अतिआवश्य है। इन को काम के और तरीके सिख़ा के रहने के लिये मकान देके बसाना चाहिये।
9.      विकासकाम होने के बाद ऐसा भी हो सकता है कि, उस वजह से पास के लोग आपत्ती के शिकार बन जाये। विकासकाम करते वख़्त यह ध्यान में रख़कर पूरी सावधानता बरतनी चाहिये।
10.   यातायात के लिये सभी शहर एक दूसरे से 300 मिटर चौड़े कॉरिडॉर से जोड़ने चाहिये। ऐसा कॉरिडॉर शहरों को गाँव ले जायेगा। शहरों में बाँढ (इनसानों की बाढ़) आने से रोकेगा। जमीन की कीमत काबू में रखेगा। वन्य पशूओं को पूरे देश में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिये रास्ता देगा।
11.   भूमिअधिग्रहण के बाद सब की रोजी रोटी चलनी चाहिये और वे कोई आपत्ती के शिकार नही होने चाहिये।
भूमिअधिग्रहण के कानून में यह और इस तरह की और शर्ते होनी चाहिये। जमीन देने में जमीन मालिकोंने त्याग करना चाहिये। लाभार्थीयों ने उनका खयाल रख़ना चाहिये। ऐसा कानून बने तो सभी तकलीफ़े दूर हो जायेगी।
भूमिअधिग्रहण के कानून में यह और इस तरह की और शर्ते होनी चाहिये। जमीन देने में जमीन मालिकोंने त्याग करना चाहिये। लाभार्थीयों ने उनका खयाल रख़ना चाहिये। ऐसा कानून बने तो सभी तकलीफ़े दूर हो जायेगी।

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