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Tuesday 19 July 2011

भ्रष्टाचार ही काले धन का मूल है।


सन्मानिय श्री अण्णा हजारे जनता के भले के लिये शासन से बातचीत कर रहे है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई कर रहे है। भ्रष्टाचारी व्यक्तिओं को पकड़ने और सजा देने के लिये लोकपाल यंत्रणा बनाने के लिये आग्रह कर रहे है। सन्मानिय श्री राम देव बाबा परदेशी बैंको से भारतीय व्यक्तियों ने जमा की हुई पुंजी भारत में वापस लाने की मांग कर रहे है। दोनो ने ही भारतीय जनता के हित के लिये आवाज उठाई है। दोनो ही भारतिय जनता के तरफ़ से शासन से बातचीत करने का दावा करते है। क्या सन्मानिय श्री अण्णा हजारे और सन्मानिय श्री राम देव बाबा जनता के प्रतिनिधी है? ऐसा हो तो फिर जनता ने चुने हुये प्रतिनिधी कौन है?

प्रजासत्ताक राज्यप्रणाली में जनता ने चुने हुये प्रतिनिधीही जनता का प्रतिनिधित्त्व करते है। मगर जनता ने चुने हुये प्रतिनिधी क्या भारत की जनता के असली प्रतिनिधी है? इसका जबाब भी ना में ही है। यह प्रतिनिधी आम जनता की राय नही। इतना ही नही तो हरेक को 51 फी सदी व्होट भी नही मिले। बल्की चुनाव में हिस्सा लेनेवाले हर एक शेष उमेदवारसे जादा व्होट जुटा पाये। इसका मतलब यह है की, जनता के प्रतिनिधि कहलानावाले असल में जनता के प्रतिनिधि है ही नही। जनता के असली प्रतिनिधी चुनने के लिये 51 फी सदी व्होट मिलना अनिवार्य करना चाहिये। इस के लिये दो या उस से जादा दफा मतदान प्रक्रिया इस्तेमाल करना अनिवार्य होगा। इस के साथ व्होटरों को भी पटरी पर लाना पडेगा। 100 फी सदी व्होटरों को व्होट देना अनिवार्य करना होगा। व्होटरों को व्होट देने के बाद पर्ची देनी चाहिये। चुनाव संपन्न होने का बाद इंटनेटपर व्होटरों की सुची व्होट दिया या नही के साथ प्रकाशित होनी चाहिये। जिन जिन व्होटरों ने व्होट नही डाले वह हरेक व्यक्ति के राशन कार्ड, व्होटर कार्ड, पारपत्र, आधारपत्र आदि रद्द किये जाने चाहिये। ऐसा करने से कम से कम 51 फी सदी व्होट पाने वाले चुनाव जीत सकेंगे और ऐसे प्रतिनिधी जनता के प्रतिनिधी कहने लायक होंगे।
मेरे समझ़ने में यह नही आता की, चुनाव जीतने वाले सभी जनता के प्रतिनीधी होने के बावज़ूद उन में से कुछ विरोधी पक्ष में कैसे गिने जाते है। क्या यह प्रतिनिधी ज़नता के खिलाफ काम करते है? ऐसा नही तो सभागृह का नेता चुनने का अधिकार इन को क्यों नही? पूरे सभागृह ने अपना नेता चुनना चाहिये। चुने हुये नेता को मंत्रीमंडल बनाने का अधिकार होना चाहिये। मंत्रीमंडल बनाते वख्त़ कोन सा प्रतिनिधी कौन से राजनीतिक पक्ष से ताल्लुक रख़ता है इसका विचार नही होना चाहिये। ऐसा सभागृह पूरी जनता का प्रतिनिधित्व करेगा। जनता में जनता के हित का सोचनेवाले व्यक्ति होते है। ऐसे व्यक्ती की आवाज जनप्रतिनिधी आवश्य सुने और जनहित में कार्य करे। यदी जनप्रतिनिधी ऐसा न करे तो जनता इकठ्टी हो कर राज्यकर्ताओं को सही कदम उठाने के लिये मज़बूर कर सकती है।
यह सब करने के लिये भारत में मूल ढाँचे में बदलाव लाना आवश्यक है। काला धन का मूल भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार मिटाने से ही काला धन का निर्माण बंद कर सकते है। राजनीती में आने वाले जनता की भलाई के लिये नही मगर सत्ता में आने के लिये चुनाव लड़ते है। सत्ता हर एक को भ्रष्ट बनने में मदत़ करती है। चुनाव प्रक्रिया में बदलाव लानेसे भ्रष्टाचारपर काबू पाने में सहायता मिल सकती है। दूसरा कारण बड़े चलनी नोट। बड़े नोटों के वज़हसे पैसोंका लेनदेन और कमसे कम जग़ह में रखना संभव होता है। पैसों की लेनदेन रोकड़ की जग़ह बैंक से हो जाये तो इसपर काबू रखना आसान है। अधिक जानकारी के लिये इधर देखिये। http://janahitwadi.blogspot.com/2010/10/preparations-needed-for-fighting.html.
अण्णाजी सचही सोचते है कि कठोर सज़ा और वह देने के लिये लोकपाल आवश्यक है। मगर राज्यकर्ताओंने जनता का ध्यान किसी औरही ज़गह मोड दिया। मूल प्रश्न लोकपाल नियुक्ती और लोकपाल का कामकाज़ कैसा चले यह है। मगर बहस हो रही है 'क्या पंतप्रधान को लाकपाल की कक्षा में लाया जाय?' इससे यह प्रतित होता है कि लोकपाल बिल कैसा भी हो राज्यकर्ता उसे अपने तरी के से स्वहित के लिये ही उस्तेमाल करेंगे। वर्तमान में ऐसे बहुत कायदे है जो मरोड़ के राज्यकर्ताओंने अपने फायदे के लिये इस्तेमाल किये है। इस में कोई आश्चर्य नही होगा की लोकपाल भी उसी रास्ते से चलेगा। अण्णाजी से प्रार्थना है। मसुदा बनाने के बजाय लोकपाल के विषय में जोभी माँगे है वही शासन को मानने के लिये तैयार करें।
बाबाजी भी जनता के हित में सोचते है। मिडियाने परदेशी बैंको में भारतीयोंने जमा किया हुये धन के बारे में इतना कहा है कि यदि वह पैसा भारत में वापस लाया तो 30 साल तक भारतीयों को कोई भी टैक्स (कर) देने की जरूरत नही. आम जनता के उपर मिडियाने प्रभाव डालाही है मगर बाबाजी भी वही सोचने लगे। ध्यान रख़ने की एक बात है। बैंक पैसा अपनी तिज़ोरी में नही रखती. पैसा ब्याज़पर दिया जाता हेै। जिन्होने कर्जा लिया है वह चुकाने के लिये कोई काल मर्यादा होती है। बैंक पैसा वापस करना भी चाहे तो यह नामुमकिन है। हमारी माँग होनी चाहिये की पुरा पैसा भारत शासन के नाम किया जाए। आगेचलकर कोई यह गलती करता है तो ऐसे व्यक्ती को फाँसी की सज़ा दी जाय। याने कानून पारित होने के बाद कोई काला धन परदेसस्थित बैंक में जमा करता है तो उस व्यक्ति को फाँसी पर लटकाया जाय। इसमें ध्यान देने की एक बात है। काला पैसा भ्रष्टाचार का फल है। भ्रष्टाचार  रोका जाय तो काले धन का निर्माण बंद हो जाएगा। कमसे कम अभी ऐसे कदम उठाये जाय की भविष्य में काला धन निर्माणही ना हो। पहला कदम यह होना चाहिये। उसी के साथ पूरा काला धन चाहे देश  में हो या विदेश में पूरा भारत शासन के नाम किया जाय। इस के बावज़ूद काला धन निर्माण हो तो वह निर्माण करने वाले को फाँशी दी जाय।

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