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Saturday 27 August 2011

क्या जनता को लोकपाल मिलेगा?

जनलोकपाल की शर्तें जनता को राहत देने के लिये है। भारत में पिछले 64 साल में कई भ्रष्टाचार हुये। कहते है कि 910 लक्ष करोड से भी जादा। मगर सबसे जादा जनता तंग आयी है क्यों की, शासन के दफ्तर में कोई भी काम करवाने के लिये पैसा देना पडता है। कोई भी शासन के दफ्तर में कौनसा काम किस तरि के से होगा इस की जानकारी नही देते। शासन के कर्मचारी कानून का सहरा लेते है मगर कानून किसि को नही बताते। पैसा ले कर भी चक्कर कटवाते है।
चुनाव जीतनेवाले कहते है कि, हम जनता के प्रतिनिधी है। जनता जो चाहती है वह हम अच्छी तरह से समझते है। जनता के लिये काम करते है। मगर मुझे यह समझने में नही आता की 10-15 फीसदी वोट लेकर जीतनेवाले सांसद पूरी जनता के प्रतिनिधी कैसे हो सकते है। पिछले सभी चुनाओं का अभ्यास करने से यह स्पष्ट होता है की, चुनावों में करीब 50 फीसदी वोटर वोट देते है। चुनाव में कई उमेदवार होते है। इन में से जो बाकी उमेदवार से जादा वोट पाता है उसे विजयी घोषित किया जाता है। इस का यह मतलब है कि, कोई भी चुनाव क्षैत्र में 50 फीसदी वोट कई उमेदवारों में बांटे जाते है। 3-4 उमेदवार होने से भी करीब 15 प्रतिशत वोट लेनेवाला उमेदवार जीत सकता है। इसलिये चुनाव जीतनेवाला हर उमेदवार जनता का प्रतिनिधी नही हो सकता। ऐसे सांसदों की सांसद जनता की सांसद नही हो सकती। एक भूतपूर्व सभापति माननिय सोमनाथ चटर्जी कहते है "रामलीला मैदानपर कितने लोग आये? 1 लाख, 2 लाख, 5 लाख मगर सांसद पूरे देश के लोंगोने चुने है।" सोमनाथ चटर्जीसे प्रार्थना है कि क्या पूरे देश के लोग वोट देते है? क्या भारत के हर शहर में अन्नाजी का नारा नही गूँजा? फिर सिर्फ रामलीला मैदाम में इकठ्ठे हुये लोगों की बात क्यों सोचते हो। अन्नाजी के पीछे पूरा भारत खड़ा है और जनता की माँग अन्नाजी कह रहे है। जनता अन्नाजी जैसे व्यक्ती की राह देख रही थी। अन्नजी की शर्ते जनता की शर्ते है। जनता सांसदों से श्रैष्ठ है। इस में संसद का अपमान नही बल्की संसद को क्या करना चाहिये इस की प्रार्थना है।
करीब 100 प्रतिशत चुनाव जीतनेवाले चुनाव का प्रचारखर्च चुनाव जीतने के बाद वसूल करना चाहते है। इस के साथ अगले चुनाव के लिये पैसा इकठ्ठा करना चाहते है। जब पैसा मिलना चालू होता है तब कोई भी रुकने का नाम नही लेता। जितना मिलता है वह लेतेही है। उस के बाद उनकी माँग बढ़ जाती है। 910 लक्ष करोड इसी कारन जनता के काम नही आये। हर सांसद भ्रष्ट नही है। यह भी जनता जानती है। मगर यह भी सत्य है की, लगभग सभी सांसद भ्रष्ट है। लोेकशाही में जिन की मेजारटी होती है उसे ही प्रमाण माना जाता है। इस लिये सांसद भ्रष्टाचारी होते है यह जनता की भावना कबूल करनी चाहिये। सांसद यह भी कहते है कि, वर्तमान कानू की वज़हसे हालही में भ्रष्टाचार के मामले सामने आये है। इस लिये और कोई कानू की आवश्य नही है। क्या कोई दावे के साथ कह सकता है की सारे भ्रष्टाचार के मामले सामने आये?  अभी कोई भी भ्रष्टाचार का मामला नही है। जनता की राय है कि, जो मामले सामने आये वे मामले सिर्फ हिमनग की चोटी है। हिमनग सामने आया तो जनता को कोई कर देने की जरुरत नही होगी। लोकपाल भी शायद सभी मामले धँूढ नही पायेगा यह भी सत्य है। मगर अभी जितने मामले सामने आये इस के कई गुना भ्रष्टाचार के मामले सामने आयेगे। जाँच के बाद दोषीपर कारवाई होगी। इस का परिणाम औरों को भ्रष्टाचार से रोकेगा। इस लिये लोकपाल आवश्यक है।
क्या ऐसे सांसदों से सशक्त लोकपाल की उम्मीद की जा सकती है? क्या सभी खासदार जनलोकपाल की शर्तें मान्य करेंगे? जनताने आवाज उठाया। अन्नाजी के नेतृत्व में लडाई लड रहे है। अन्नाजी का जनता का भी सांसदोंपर विश्वास नही है। अन्नाजी का यह अनुभव है। इस का एक ही मतलब निकलता है। जागते रहना अभी तक खत्म नही हुआ। जनता को जागते रहना पडेगा। जनलोकपाल पारित होने के बाद भी।

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