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Thursday, 21 June 2012

अल्पसंख्यक को आरक्षणः


अल्पसंख्यक को आरक्षणः
कई राज्यशासन और केन्द्रिय शासन अल्पसंख्यंको के लिये आरक्षण का वादा कर रहे है। मगर न्यायव्यवस्था यह वैधानिक न होनेसे मना कर रही है। संविधान में बड़ी सोच के बाद आरक्षण का प्रबंध किया है। जिन वर्गों को पिछले हजारों सालों में शिक्षा का अधिकार नही दिया था उन्ही वगोंर् के लिये ही यह प्रबंध है। महाभारत में एकलव्य का उदाहरण है। वह वनवासी होने की वज़हसे उसे गुरु द्रोणाचार्यने धनुर्विद्या नही सिख़ाई। इन वर्गों को अछुत समझा जाता था।
स्वामी विवेकानंदजीने उपाय बताया था। इन वर्गों को एक की ज़गह 5-6 गुरु होने चाहिये। उन के लिये शिक्षा सिर्फ निशुल्क ही नही मगर उसके साथ खाने-पीने का प्रबंध भी होना चाहिये।
Swami Vivekananda
और यह खाना-पीना सिर्फ विद्यार्थीओं को ही नही तो उन के माता-पिता, भाई-बहन वगैरे कों भी देना चाहिये। संविधान में इस का प्रबंध नही है। संविधान सिर्फ विद्यार्थी या उम्मीदवार के बारे में सोचता है। भारत में मुसलमान, ख्रिश्चन, शीख़, पारसी लोगों को अल्पसंख्यांक कहते है। मगर ये सब कभी ना कभी प्रशासक या व्यापारी थे। शीखों में भी पिछड़ी जातीयाँ है। उन को आरक्षण का प्रबंध संविधान में है। अभी जो प्रस्ताव रखा गया है वह उस वर्ग के लिये है जो वर्ग कभी ना कभी प्रशासक था। आरक्षण के लिये कोई पक्ष को खास मेहनत नही करनीहोती। ना उनके ज़ेबसे पैसा ख़र्चा होता है ना कोई श्रम करने पड़ते है। इस कारन अल्पसंख्यों के लिये आरक्षण सिर्फ चुनाव जीतने के लिये राजनीती पक्षों का प्रयत्न है। कुछ लोगों का कहना है कि, यह सभी लोग हिंदू ही थे। ज़ब उन का धर्मपरिवर्तन हुआ तो उन की जात उन के साथ कायम रही। उदाहरण के तौरपर इस का मतलब है कि, इस्लाम भी जाति मानता है। यदि यह सच है तो इस्लामने जातिव्यवस्था को कबूल करनी चाहिये और इसे मान्यता देनी चाहिये। अगर कोई धर्म यह कबूल नही करता तो उस धर्म के लोगों का आरक्षण के मामले में विचार नही होना चाहिये। भारतदेश में हजारो धर्म, जाति, उपजाति है। इस लिये संविधान में धर्मनिरपेक्ष तत्व का प्रावधान है। मगर धर्मनिरपेक्ष का मतलब सर्वधर्म समभाव या धर्म ना मानना नही है। कट्टर धार्मिक व्यक्ति भी धर्मनिरपेक्ष हो सकता है, यदि उस के कोई भी निर्णय में धर्म-जातिका प्रभाव नही हो। निर्णय लेते समय सिर्फ भारतीय है यै नही है यह समझकर ही निर्णय लेना चाहिये।
कुछ लोगों का मानना है कि, कुछ जातियाँ कभी भी अछुत नही समझी जाती थी। उन्हे शिक्षा का अधिकार था। फिर भी उन जातीयों में शिक्षा का अभाव है। उन का रहन सहन पिछड़ी जाती सरीखा ही है। ऐसेजाती के लोगों को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिये। मगर सवाल यह है कि, ऐसी जातियाँ पिछड़ी जातियों के साथ रोटी बेटी व्यवहार क्यूँ नही करती? यदी उन्हे आरक्षण देना है तो पहले उन में  रोटी बेटी व्यवहार प्रस्थापित होना चाहिये। ओबीसी नेता कहते है कि, ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ जरूर दे सकते है। मगर उस के लिये जगह बनाने के लिये ओबीसी आरक्षण कम न होना चाहिये। इस का मतलब यह है कि, सर्वसाधाण कोटा कम कर के उन को आरक्षण दिया जाय। इस का सीधा प्रभाव ब्राह्मणों पर पड़ेगा। आज़ ब्राह्मण उम्मीदवार 90 प्रतिशत गुणवत्ता रखते हुये भी शिक्षा प्राप्त नही कर सकता, नौकरी नही पा सकता। अभी 50 प्रतिशत सर्वसाधारण कोटा है। यह और भी कम हो जायेगा। उस का मतलब यह हुआ कि, 92-95 प्रतिशत गुणवत्ता होने के बावज़ूद ब्राह्मण उम्मीदवार असफ़ल होगा। संविधान में जो 50 प्रतिशत का प्रावधान रख़ा है वह काफ़ी सोचसमझ के बाद ही रख़ा होगा। इस का मतलब यह हुआ कि, जो भी निर्णय लेंगे वह लेते समय किसी पर भी अन्याय नही होना चाहिये।
मेरे विचार में समस्या का हल ढूँढने के लिये सबसे पहले जातिव्यवस्था का निर्मूलन करना चाहिये। अंग्रेजोंसे स्वातंत्र्य पाने के बाद 64 साल हुये। मगर हमें आज़ तक कोई राहत नही मिली। राज़नीती पक्ष जनता को आरक्षण का गाज़र दिखा के सत्ता पाते रहे। खुद का विकास करते रहे। अपना और अपनों का जीवन सुखी करते रहे। मगर आम जनता आपस में लड़ती रही और राजनीती पक्षों को सर पर बिठाती रही। समय आया है अब आम जनताही मैदान में उतरकर समस्या का हल खुद ढूँढे। एक कर सकते है। आरक्षण उम्मीदवार की ज़ाती पर निर्भर ना रख़े। आरक्षण उम्मीदवार के दादा या दादी या नाना या नानी याने इन में से किसी एक को भी आरक्षण की सुविधा हो तो उस उम्मीदवार को भी वैसा ही आरक्षण का लाभ दे। इससे सभी धर्मों में जातिव्यवस्था नष्ट होगी। कैसे? कोई दाम्पत्ती को बच्चा होता है तो उस की जाति यदी दोनो ही पिछड़े जाति के हो तो उस की जाति बाप की जाति होगी। मगर उस मे किसी एक की जाति आरक्षण के लिये ग्राह्य नही होगी तो उसे सिर्फ भारतीय समझा ज़ायेगा। ऐसा करने से भविष्य में 50-100 साल में ज़ातिव्यवस्था का उच्चाटन होगा। कोई भी धर्म में जातिव्यवस्था रहेगी ही नही। तो आरक्षण का सवाल ही नही होगा। विचार किजीये कि, यह समाधान योग्य होगा या नही और अपनी प्रतिक्रिया इधर ही दिजिये। धन्यवाद। जय भारत।

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