कहा जाता है कि, सन्माननिय अण्णा हजारे जनता के लिये दूसरा स्वातंत्र्य संग्राम लड रहे है। मगर भारत को इस के पहले कम से कम 4 दफा परकिय आक्रमकों विरुद्ध और 3 दफा अंदरुनी शक्तिओं के विरुद्ध संग्राम करना पडा। अभी भी आतंकीयों के विरुद्ध लडना पड रहा है।
सिकंदरने भारतपर आक्रमण किया और भारत को गुलाम बनाया। आर्य चाणक्य ने अपना शिष्य चंद्रगुप्त को सक्षम बनाया और भारत के सभी राजाओं को एक निशान के नीचे लाकर सिकंदर की फौज को भारतसे ख़देड़ दिया। यह पहला स्वातंत्र्यसंग्राम कह सकते है। इस के बाद तुर्कस्तान, इराक, इराण, अफगानिस्तान से आक्रमक आये। शूरु में ये सब सिर्फ संपत्ती लूटकर वापस अपने देश जाते थे। मगर फिर उन्हे भारत पसंद आया और उन्होने भारत को गुलाम बनाया। राजपूतोंने उन्हे खदेड़ने की काफी कोशिश की मगर वह कोशिश अपना अपना राज्य बचाने के लिये की। पूरे राजपूतों को एक निशान के नीचे लाने के लिये तब चाणक्य नही थे। राजपूतों की कोशिश भारत बचाने की नही थी इसलिये उनके संग्राम को स्वातंत्र्यसंग्राम नही कहा जा सकता। इन आक्रमों का मुकाबला छत्रपति शिवाजी महाराजने किया। मोगलों को दख्ख़नसे खदेडने की कोशिश की। शिवाजी का संग्राम मुसलमानों के खिलाफ नही था बल्की परकीय मुसलमानों के खिलाफ़ था। शिवाजी का संग्राम पूरी तरहसे सफल नही रहा। फिर भी वह संग्राम भारत को मुक्ती दिलाने के लिये था। इस लिये उसे दूसरा स्वातंत्र्य संग्राम कहना चाहिये। वर्तमान काल में कुछ प्रवृत्तीयाँ हिंदू मुसलमानों को एक दुसरे के खिलाफ भड़काते है। उन्होने यह ध्यान में लेना चाहिये और अपने नाजायज धंदे बंद करने चाहिये। अंग्रेजोंने 1818 में मराठों के खिलाफ़ युद्ध जीत के पूरे भारत को गुलाम बनाया। सन 1856 में अंर्गेजों के खिलाफ भारत में सभी जग़ह असंतोष फैला हुआ था। उस की परिणिती 1857 के तिसरे स्वातंत्र्य संग्राम में हुई। यह संग्राम सफ़ल नही रहा मगर असंतोष चरमसीमा के तरफ़ बढ़ताही गया। भारत के सभी इलाकों में बहुतों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। मगर कुछ चाहते थे प्रथम समाज सुधार तो कुछ चाहते थे प्रथम स्वातंत्र्य। इसी ज़माने में राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना हुई। लोकमान्य तिलक सोचते थे की समाज सुधार आवश्य होना चाहिये मगर उस के लिये स्वातंत्र्य संग्राम रुकना नही चाहिये। सुभाषचंद्र बोस सोचते थे संग्राम बंदूकसे ही हो सकता है। इनके विचारोंसे सहमत होनेवाले बहुतोंने अपने अपने हिसाबसे अंग्रेजों का मुकाबला किया। महात्मा गांधी भारत और भारत की संस्कृती अच्छी तरह जानते थे। गांधीजीने संग्राम को अहिंसा की राह दिखाई और अधिकतम लोंगोने उसी राह पर चलना पसंद किया। बंदूक की जग़ह गांधीजी ने अहिंसा का शस्र इस्तेमाल किया। और भारत 1947 में चौथा स्वातंत्र्य संग्राम जीत गया। इंदिराजीने भारतपर आपत्कालीन स्थिती लादकर लोगों को स्वातंत्र्य संग्राम करने के लिये मज़बूर किया। जय प्रकाश नारायण इस दफे चाणक्य बने। जय प्रकाशजीने सभी राजनेताओं को एक छत्र के नीचे लाकर पाँचवा स्वातंत्र्य संग्राम जीता दिया। 1990 में भारत की आर्थिक स्थिती नाजूक थी। 1991 में डॉ मन मोहन सिंह अर्थमंत्री बनाये गये। मन मोहन सिंहजी ने अर्थव्यवस्था खुली कर दी और भारत का आर्थिक दैन्य खत्म कर दिया। यह भारत के लिये छटवा स्वातंत्र्य युद्ध था। 1999 में अणु चाचणी के वजहसे भारतपर कई निर्बंध लादे गये। तकनिकी सहाय्यता बंद कर दी। भारत के वैज्ञानिकों ने अपना तकनिक बना के भारत को साँतवा स्वातंत्र्य बहाल किया। वर्तमान स्थिती में हमारे सामने दो दानव खड़े है। एक भ्रष्टाचार और दुसरा आतंक। भारत को दोनों से मुक्ती दिलानी है। यह युद्ध आठवाँ और नौंवा स्वातंत्र्य संग्राम होंगे।
भ्रष्टाचार से मुक्ती दिलाने के लिये कई कदम उठाने
पडेंगे। कोई एक उपाय कर के इस दानव का खातमा नही किया जा सकता। सन्माननिय अण्णा हजारेजी
ने कदम उठाया है। लोगोंने खुलकर अण्णाजी का साथ दिया है। पूरी जनता भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी है। कई उपायों में से लोकपाल यह एक उपाय है। शासन किस हद तक जनता की
माँग स्वीकार करती है यह कुछ ही दिनों में सामने आयेगा। अण्णाजी का अहिंसा का शस्त्र
इस संग्राम में कम से कम आजतक कारगिल साबित हुआ है। जनलोकपाल या लोकपाल अकेला भ्रष्टाचार
खत्म तो नही कर सकता मगर भ्रष्टाचारियों के मन में डर जरुर पैदा करेगा।
औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में अर्थक्रांती नामक सेवाभावी
संस्था हे। इस संस्थाने दो उपाय बताये है। पहला चलन से रु. 100 और उससे जादा किमतवाले
नोट निकाले जाये और दूसरा सभी आर्थिक व्यवहार बैंकसे की जाये। जभी खाते में पैसा जमा
होगा तब 2 फीसदी कर के रुप में जमा किये जाये। दूसरे सभी कर समाप्त किये जाये। यह विचार
बहोत अच्छा लगता है। बड़े नोट चलनसे बाहर जानेसे भ्रष्टाचारिओं को पैसा रखने के लिये
जादा जगह लगेगी। कर संकलन आसान हो जायेगा। लोगों को बारबार कर नही देना पडेगा वगैराह।
मगर व्यवहार में लाना काफी मुश्कील काम है। बैंक में खाता खोलने के लिये कम से कम रु.
1000 लगते है। कुछ बैंक 2500 भी माँगती है। सर्वेक्षण कहता है की 30 फीसदीसे जादा लोगों की दैनिक आमदनी रु. 20 है। ऐसी स्थिती में बैंक में खाता खोलना मुश्कील है। 2 फीसदी
करप्रणाली काफी कुछ आसान करेगी मगर बचत के लिये प्रोत्साहन नही देगी। लोकपाल, चलन, कर इन के अलावा भी बहुत मुद्दे है। सभी मुद्दोंपर विचार आवश्यक है।
चुनाव का मुद्दा लिजिये। चुनाव खर्चे पर बंधन है। मगर इस बंधन का शायद ही कोई प्रत्याशी पालन करता है। व्यवहार में यह खर्चा
40-50 गुना जादा होता है। दिखाया हुआ खर्चा बंधन के नीचे ही होता है। अगर कोई इतना
खर्चा करता है तो वह सिर्फ लोक सेवा के लिये करता है यह मानना गलत ही होगा। चुनाव जीतने
के बाद सिर्फ इतनाही नही तो उससे कई गुना जादा पैसा कमाया जाता है। जनता को चुनाव के
दिन छुट्टी जरूर दी जाती है। मगर करीब 50 फीसदी वोटर अपने हक़ का इस्तेमाल करते है।
चुनाव में कई प्रत्याशी होते है। उस में से करीब 15 फीसदी वोट कमानेवाला चुनाव जीतता
है। क्या वह बाकी 85 फीसदी वोटरों का प्रतिनिधी कहा जा सकता है? चुनाव कानून में सुधार
आवश्य है। इस के साथ क्या राज्य छोटे होने चाहिये? यह मुद्दा भी है।
आरक्षण यह नाजूक मुद्दा है। जभी माँग उपलब्धता
से जादा होती है तो आरक्षण एक कारगिल उपाय जैसा इस्तेमाल किया जाता है। आरक्षण का गाजर
दिखा के कई प्रत्याशी जीत जाते है। इस मामले में प्रत्याशी को कुछ काम करने की आवश्यकता
नही होती। जनता को आरक्षण का प्रस्ताव दे कर बेवकूफ़ बनाया जाता है। जनताने राज्यकर्ताओं
से माँग के मुताबिक उपलब्धता बढ़ाने की माँग करनी चाहिये। दूसरी बाजू यह है की, इस
मुद्देसे जनता का विभाजन किया जाता है। धर्म जाति, भाषा, प्रदेश ऐसे कई आधारपर विभाजन
राजकारणी कर रहे है। राजकारणी सिर्फ स्वार्थ
देखते है। ऐसा प्रतित होता है कि, जब तक पैसा मिलता रहता है तब तक उन्हे देश से कोई
मतलब नही है। इस्लामवादीयोंने आतंक फैला दिया है। हिंदुत्त्ववादी हम भी कुछ कम नही
का नारा लगा रहे है। इसका परिणाम भारत के और विभाजन में हो सकता है।
जातिव्यवस्था यह कई सालोंसे भारत पर काला धब्बा
बना रहा है। इस की वजहसे हिंदुओं की संख्यां
5-10 प्रतिशतसे जादा नही है। बाकी सब जातिओं को, बॅकवर्ड क्लास में समाविष्ठ किया गया
है। यह लोग हिंदू कहलवाने में गर्व महसूस नही करते। यह जातियाँ चुनाव में उन्हे मदत
करने का वादा करनेवालों को वोट देते है। राजनैतिक पार्टियाँ इस का फायदा उठाती है।
इस वजहसे अच्छे लोग चुनाव नही लड़ना चाहते। भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिये पूरा
भारत एक होना चाहिये। धर्म या जाति या भाषा या प्रदेश जैसे तत्त्वोंपर विभाजन नही होना
चाहिये. अण्णाजी के आंदोलनने दिखा दिया की, युवावर्ग संग्राम में हिस्सा लेना चाहता
है। आवश्यकता है अण्णाजी जैसे नेताओं की। यह आँठवा स्वातंत्र्य संग्राम है।
पीछले करीब तीस सालसे आतंकी भारत में घिन्नौनी
हरकते कर रहे है। पहले तो वे भारत की सीमा पारसे आते थे। फिर ऐसे आतंकी भारत में पैदा
होने लगे। पहले यह इस्लाम मानते थे। फिर उन के साथ कुछ शीख भी मिल गये और अभी 5 प्रतिशत
जो खुद को हिंदू कहलवाते है वे भी प्रत्युत्तर के नामसे यह घिन्नौना मार्ग अपना रहे
है। आतंक मिटाने के लिये पूरा अभ्यास आवश्यक है। सन्माननिय बाबाजीसे मैंने नेतृत्त्व करन के लिये प्रार्थना की है। यह भारत की जनता का नौवाँ स्वातंत्र्य संग्राम
होगा।
वर्तमानकाल में आठवाँ और नौवाँ स्वातंत्र्य संग्राम
एक साथ चलाने चाहिये और अण्णाजी और बाबाजी जैसे नेताओंने नेतृत्त्व करना चाहिये।
4 comments:
भारत देश को मिटाने का चिदम्बरम -सोनिया कुचक्र खोला डा.स्वामी ने, अवश्य देखें वीडियो, तिलक संपादक युगदर्पण
My Bharat being crushed by Chidambaram, a sonia-man, a must see vedio of Dr swami, Tilak Editor Yug Darpan 09911111611,
http://www.youtube.com/user/DoorDarpan#p/c/17D218DE462E6B7A/0/Yau0DswIjXY
The facts of history in this post is very wrong, they want amendment. So anyone who read this post please keep your mind open before reading it.
@ Dr. Ravinder S. Mann, If you are confident that the history is wrong, please illustrate. I will correct the same. I wish the article to be accurate.
@ तिलक रेलन, I saw the video. I personally never considered Sonia did any sacrifice in this case. For her, She is better as a controller than becoming PM. She can get credit and send debit to MM Singh.
However I fail to understand how it is connected with Corruption or terrorism?
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