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Saturday 30 July 2011

सन्माननिय अण्णा और बाबा अपनी जिंदगी दाँवपर क्यों लगा रहे हैं।

यह सत्य है कि भ्रष्टाचारसे जनता त्रस्त है, जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध है (इधर पढिये), भ्रष्टाचारने सामान्य व्यक्तियैं का जीना हराम कर दिया है। मगर भ्रष्टाचारियों का निर्मूलन सिर्फ लोकपाल कर नही सकता। मन में भगवान का डर पैदा कर के लोगों को अच्छे बर्ताव के लिये प्रेरित किया जा सकता है। मगर मनुष्यने मनुष्य को दी जानेवाली सज़ा के डरसे कोई भी मनुष्य डर नही जाता। (इधर पढिये/देखें)। सिर्फ इस्लाम ऐसा मानता है। इस्लाम में जब इस तत्त्व का अंतर्भाव हुआ तब की परिस्थिती अलग थी। अब की परिस्थिती अलग है। अंग्रेजी में कहावत है। सत्तासे भ्रष्टाचार का जन्म होता है और असीमित सत्तासे भ्रष्टाचार भी असीमित होता है।
भारत में सत्ता हासिल करने के लिये चुनाव जीतना पडता है। चुनाव जीतने के लिये भ्रष्टाचारी कई तरकीबे लड़ाते है। अर्थ याने पैसा चुनाव जीतने में मद़त करता है। भ्रष्टाचारिओं का नारा है "चुनाव जीतो पैसा कमाओ। कमाया हुआ पैसे का कुछ हिस्सा लागत समझ के चुनाव में इस्तेमाल करो और अनगिनित संपत्ती के मालिक बनो।"
जनता को भ्रष्टाचारसे मुक्ति चाहिये। इस में कोई शक नही। मगर अकेला लोकपाल यह करेगा इसपर विश्वास नही। मैं साहसे के साथ, दावे के साथ कहँूगा कि लोकपाल कैसा भी हो वह भी भ्रष्ट बन जायेगा। पैसा ऐसी चीज की, वह भले भले का चारित्र्य बदल सकती है। लोकपाल चुनना मुश्किल है ही, मगर उसे भ्रष्टाचारसे दूर रखना मुश्किल ही नही नामुमकीन है। लोकपाल को पूरी सत्ता और पूरी आज़ादी दी तो उसे भ्रष्टाचारसे दूर तो न रख सकेंगे मगर उसे तानाशाह होनेसे रोक नही सकेंगे। भारत को आज आवश्यक है प्रमाणित शासन के ढाँचे की। थोड़ा दूसरा विचार करें। शायद उससे कोई समाधान नज़र आ जायेगा। धर्म व्यवस्था देखिये। कोई भी धर्म। मैं हिंदू या मुसलमान या ईसाई नाम के कोई भी एक धर्म का विचार नही कर रहा हूँ। दुनिया के सभी धर्मों में ऐसी व्यवस्था है कि, मनुष्य को गैरवर्तनसे रोका जाय। उसे गलती करने का मौका ही नही दिया जाय। सभी धर्मों के निस्वार्थ पंडितोंने इस के लिये ईश्वर का निर्माण किया। (ईश्वर को अलग धर्मों में अलग नाम से जाना जाता है।) ईश्वर एक ऐसी संस्था है कि वह किसी को दिखाई नही देती मगर हर ज़गह हर समय मौजूद होती है और मनुष्य के हर काम की जानकारी रख़ती है। सिफ़र् जानकारी ही नही मनुष्य को क्या फ़ल मिलना चाहिये इस का निर्णय लेकर उचित फ़ल भी देती है। यह अलग बात है कि, पुजारियोंने ईश्वर की अवनिती की हैं। यह पहलू चर्चा का अलग विषय है। (मेरे विचार जानन के लिये उधर पढि़ये।) आज़ ज़रुरत है ऐसी संस्था बनाने की। भ्रष्टाचार में चुनाव जीतने के लिये लगाया पैसा सबसे बडा गुन्हग़ार है। दूसरे अनेक कारन है। सभी कारनों का मूल से विचार कर के उसपर समाधान ढँूढना आवश्यक है।(इधर आप जादा जानकारी ले सकते है।
मेरी प्रार्थना है कि, अण्णाजी और बाबाजी इस के बारे में सोचे। सभी कारनों का विचार कर के ऐसा प्रस्ताव रखे कि, कोई भी मनुष्य भ्रष्टाचारसे दूर रहना पसंद करे।

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